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अब पुरूषों के लिए भी विकसित कर लिया गया है गर्भनिरोधक, जानिए किसके हाथ लगी ये सफलता और कैसे करता है ये काम

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसीएमआर) ने पहली बार पुरुषों के लिए नॉन हार्मोनल गर्भनिरोधक टीके का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है। इसे रीसूग (रिवर्सेबल इनहिबिशन ऑफ़ स्पर्म अंडर गाइडेंस) का नाम दिया गया है। यह लंबे अर्से तक प्रभावी रहता है और जब चाहे इसे निष्प्रभावी भी किया जा सकता है। आईसीएमआर ने इसका 303 स्वस्थ पुरुष स्वयंसेवकों पर सात वर्ष तक परीक्षण किया जिससे साबित हुआ कि ये सुरक्षित और प्रभावी है।

आईसीएमआर का यह अध्ययन हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका एंड्रोलॉजी में प्रकाशित हुआ। इसके अनुसार आईसीएमआर ने इस परीक्षण के लिए परिवार नियोजन क्लिीनिक से 25-40 आयु वर्ग के यौन रूप से सक्रिय स्वस्थ विवाहित पुरुषों को चुना। उन्हें रीसूग के 60 मिलीलीटर के टीके लगाए गए जो 99 प्रतिशत तक प्रभावी पाए गए और इनका कोई गंभीर दुष्प्रभाव भी सामने नहीं आया। रीसूग ने 97.3 प्रतिशत एसोसपर्मिया हासिल किया। एसोसपर्मिया एक मेडिकल शब्द है जो बताता है कि सीमेन (वीर्य) में किसी क्रियाशील स्पर्म (शुक्राणु) की उपस्थिति नहीं है। अध्ययन में पाया गया कि इसका स्वयंसेवकों की बीवियों पर भी कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ।

आइए जानते हैं आखिर रीसूग काम कैसे करता हैः

रीसूग का टीका वीर्य नलिका (स्पर्म डक्ट) में लगाया जाता है जो वीर्य को अंडकोषों से लिंग तक ले जाती है।

अंडकोश की थैली में टीका लगाने की जगह पर एनेस्थेटिक लगाया जाता है। इसके बाद वीर्य नलिका में रीसूग इंजेक्ट किया जाता है।

वीर्य नलिका में प्रवेश के बाद रीसूग इसकी अंदरूनी दीवारों पर चिपक जाता है। जब ये नकारात्मक रूप से आवेशित (नेगेटिविली चार्जड) शुक्राणुओं के संपर्क में आता है तो ये उनकी पूंछ तोड़ देता है जिसके कारण वो अंडों का निषेचन (फर्टीलाइसेशन ऑफ एग्स) नहीं कर पाते।

रीसूग गर्भधारण की संभावना 99 प्रतिशत तक कम कर देता है और इसके कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होते। इसके स्वयंसेवकों की बीवियों पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं देखे गए।

National International News Network (NIN Network)